गोलू, मोलू और भालू (Best moral story)
गोलू और मोलू पक्के दोस्त थे । गोलू जहां दुबला-पतला था, वहीं मोलू मोटा, गोल-मटोल। दोनों एक-दूसरे पर जान देने का दम भरते थे, लेकिन उनकी जोड़ी देखकर लोगों की हंसी छूट जाती थी। एक बार उन्हें किसी दूसरे गांव में रहने वाले मित्र का निमंत्रण मिला। उसने उन्हें अपनी बहन के विवाह के अवसर पर बुलाया था।
उनके मित्र का गांव कोई बहुत दूर तो नहीं था लेकिन वहां तक पहुंचने के लिए घने जंगल से होकर गुजरना पड़ता था और उस जंगल में जंगली जानवरों की भरमार थी।
दोनों चल दिए…. जब वे जंगल से होकर गुजर रहे थे तो उन्हें सामने से एक भालू आता दिखाई। दिया। उसे देखकर दोनों भय से थर-थर कांपने लगे। तभी दुबला-पतला गोलू तेजी से दौड़कर एक पेड़ पर जा चढ़ा, लेकिन मोटा होने के कारण मोलू उतना तेजी नहीं दौड़ सकता था। उधर भालू भी निकट आ चुका था, फिर भी मोलू ने साहस नहीं खोया। उसने सुन रखा था कि भालू मृत शरीर को नहीं खाते। वह तुरंत जमीन पर लेट गया और सांस रोक ली, ऐसा अभिनय किया मानो शरीर में प्राण हैं ही नहीं। भालू घुरघुराता हुआ मोलू के पास आया, उसके चेहरे व शरीर को सूंघा और उसे मृत समझकर आगे बढ़ गया।
जब भालू काफी दूर निकल गया तो गोलू पेड़ से उतरकर मोलू के निकट आया और बोला, “मित्र, मैंने देखा था…. भालू तुमसे कुछ कह रहा था। क्या कहा उसने?”
मोलू ने गुस्से में भरकर जवाब दिया, “मुझे मित्र कहकर न बुलाओ…. और ऐसा ही कुछ भालू ने भी मुझसे कहा। उसने कहा, गोलू पर विश्वास न करना, वह तुम्हारा मित्र नहीं है।”
सुनकर गोलू शर्मिंदा हो गया। उसे आभास हो गया था कि उससे कितनी भारी गलती हो गई थी। उनकी मित्रता भी सदैव के लिए खत्म हो गई।
शिक्षा: सच्चा मित्र वही है जो संकट में काम आए।
शरारती बंदर (Latest hindi moral story)
कुछ बंदर एक पेड़ पर बैठे हुए थे। वहीं पास में मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा था। एक बढ़ई लकड़ी के एक बड़े लट्ठे को बीच में से चीर रहा था। तभी भोजनावकाश हो गया। उस बढ़ई ने चिरे हुए भाग के बीच में एक बड़ी-सी खूंटी फंसा दी और अपने साथियों के साथ भोजन करने चल दिया।
पेड़ पर बैठे बंदरों ने जब देखा कि सभी लोग चले गए हैं तो वे पेड़ से नीचे उतरकर मंदिर के निकट आ गए। वे वहां पड़ी चीजों व औजारों से खेलने लगे। उनमें से एक बंदर कुछ ज्यादा ही खुराफाती था, वह उस आधे चिरे हुए टुकड़े के पास जा पहुंचा और उसके ऊपर जाकर बैठ गया। उसने अपनी टांगों को उस लठ्ठे के दोनों ओर टिका दिया, उसकी पूंछ चिरे हुए हिस्से के बीच लटकने लगी थी।
अब अचानक उस नटखट बंदर ने चिरे हुए भाग के बीच फंसी खूंटी को खींचना शुरू कर दिया। कुछ देर बाद अचानक ही वह खूंटी बाहर आ गई और लट्ठे के चिरे हुए दोनों हिस्से आपस में चिपक गए। बंदर की पूंछ बीच में ही दब गई थी। अब वह चीखता-चिल्लाता उछल-कूद करने लगा। फिर वह किसी तरह से वहां से जब निकला तो उसकी पूंछ नदारद थी, वह तो चिरे हुए लट्ठे के बीच में दबी पड़ी थी।
शिक्षा: कुछ भी करने से पहले सोच-विचार अवश्य करें।
नकल करना बुरी आदत है
एक पहाड़ की ऊँची चोटी पर एक बाज रहता था। पहाड़ की तराई में बरगद के पेड़ पर एक कौआ अपना घौंसला बनाकर रहता था। वह बड़ा चालाक और धूर्त था उसकी कोशिश सदा यही रहती थी कि बिना मेहनत किए खाने को मिल जाए। पेड़ के आस-पास खोह में खरगोश रहते थे। जब भी खरगोश बाहर आते तो बाज ऊंची उड़ान भरते और एकाध खरगोश को उठाकर ले जाते।
एक दिन कौए ने सोचा, “वैसे तो ये चालाक खरगोश मेरे हाथ आएंगे नहीं, अगर इनका नर्म मांस खाना है तो मुझे भी बाज की तरह करना होगा। एकाएक झपट्टा मारकर पकड़ लूंगा।”
दूसरे दिन कौए ने भी एक खरगोश को दबोचने की बात सोचकर ऊंची उड़ान भरी। फिर उसने खरगोश को पकड़ने के लिए बाज की तरह जोर से झपट्टा मारा। अब भला कौआ बाज का क्या मुकाबला करता । खरगोश ने उसे देख लिया और वह झट वहां से भागकर एक चट्टान के पीछे छिप गया। कौआ अपनी ही झोंक में उस चट्टान से जा टकराया। नतीजा, उसकी चोंच और गरदन टूटकर गिर गई और उसने वहीं तड़पकर दम तोड़ दिया।
शिक्षा: : नकल करने के लिए भी अक्ल चाहिए।
सेवक, बंदर और राजा (latest hindi moral story)
बात काफी पुरानी है, एक राजा को बंदरों से बहुत लगाव था। एक बड़ा बंदर तो उसके निजी सेवक के रूप में काम करता था।
राजा का मानना था कि वह मनुष्यों जैसा ही बुद्धिमान है। जब राजा अपने शयनकक्ष में होता तो वह बंदर वहीं निकट ही पहरेदारी करता रहता।
एक बार राजा जंगल में शिकार खेलने गया तो काफी दिनों बाद वापस लौटा। वह काफी थक चुका था क्योंकि तमाम सुविधाएं जुटाने के बावजूद उसे जंगल में महल जैसा सुख नहीं मिल पाया था ।
अतः आते ही वह शयनकक्ष में आराम करने चला गया। उसने बंदर को आदेश दिया कि किसी को भी उसकी नींद में खलल न डालने दे ।
बंदर आदेश का पालन करने के लिए वहीं राजा के पलंग के निकट नंगी तलवार हाथ में लेकर बैठ
गया।
थोड़ी देर बाद बंदर ने देखा कि एक मक्खी शयनकक्ष में घुस आई है। फिर वह मक्खी राजा की नाक पर बैठ गई। बंदर ने उसे उड़ाना चाहा लेकिन मक्खी वहीं आस-पास मंडराती रही। वह बार-बार राजा की नाक पर बैठती और उड़ जाती।
जब बंदर से रहा न गया, इस बार जैसे ही मक्खी राजा की नाक पर बैठी, बंदर ने आव देखा न ताव,उस पर तलवार चला दी।
मक्खी का तो क्या होना था, वह तो उड़ गई, लेकिन राजा का सिर जरूर धड़ से अलग हो गया।
शिक्षा : मूर्ख मित्र से कहीं अच्छा होता है बुद्धिमान शत्रु ।