संन्यासी और चूहा || कौआ और बंदर || भेड़िया आया, भेड़िया आया || बुद्धिमान केकड़ा Four moral stories in Hindi

संन्यासी और चूहा

एक गांव की सीमा पर एक मंदिर बना था, जिसमें एक पुजारी रहता था। वह आस-पास के गांवों में पूजा-पाठ करके अपना निर्वाह करता था। उसकी एक आदत थी कि रात को भोजन के बाद वह शेष बचा खाना एक हंडिया में डाल देता और उस हंडिया को छत से लटकती रस्सी में बांध देता।

उसी मंदिर के निकट एक मोटा चूहा रहता था। वह रात को अपने बिल से बाहर आता और उछल-कूद कर उस हंडिया तक जा पहुंचता और उसमें रखा भोजन चट कर जाता। सुबह उठने पर पुजारी को वह हंडिया खाली मिलती। यह अब नित्य का नियम हो गया था। लेकिन पुजारी को इससे बेहद दुःख होता, उसे कुछ नहीं सूझता था कि किस प्रकार उस चूहे को वहां से भगाया जाए।

एक दिन एक संन्यासी घूमता हुआ उधर आ निकला और रात बिताने के लिए वहीं मंदिर में पुजारी के साथ ठहर गया। पुजारी अपने आगंतुक की कोई आवभगत न कर सका। उसने बेहद संकोचवश यथास्थिति से उस संन्यासी को अवगत कराया।

उस संन्यासी ने उसे चिन्ता न करने को कहा और एक उपाय सुझाया। उसने कहा कि हमें चूहे का बिल खोजकर उसे ध्वस्त करना होगा। मुझे लगता है चूहे ने वहां काफी भोजन इकट्ठा कर रखा है। यह उस भोजन से उठती खुशबू की ताकत का ही कमाल है जो वह इतनी ऊंची छलांग लगा लेता है कि हंडिया तक पहुंच जाए। पुजारी तथा संन्यासी दोनों चूहे का बिल खोजने के लिए एक दिन चूहे के पीछे लग गए। जब उन्हें बिल का पता चल गया तो उन्होंने उसे तहस-नहस कर दिया। उस बिल में रखा भोजन भी मिट्टी में मिल गया।

चूहा यह देखकर बहुत परेशान हुआ क्योंकि उसको उछलने की शक्ति प्रदान करने वाला स्रोत जो नष्ट हो गया था। अब उसे अक्सर भूखा ही रहना पड़ता था, धीरे-धीरे वह कमजोर होता गया और एक दिन जब वह भोजन की तलाश में भटक रहा था तो एक बिल्ली उसे पकड़कर खा गई ।

शिक्षा: धन के साथ ताकत भी आ ही जाती है।

कौआ और बंदर {Moral story}

बहुत पुरानी बात है, जंगल में एक घने पेड़ पर बनाए घोंसले में कौए का एक जोड़ा अपने बच्चों के साथ चैन से रहता था। उनका घोंसला बहुत सुंदर व मजबूत था, जो पेड़ की मजबूत शाख पर बना था।

इसी पेड़ पर एक मोटा बंदर भी रहता था। उसका रहने का कोई ठिकाना नहीं था, कभी इस शाख पर सो जाता तो कभी दूसरी पर। इसी तरह उसके दिन गुजरते थे ।

एक दिन तेज तूफान के साथ मूसलाधार वर्षा होने लगी, ठंडी हवा भी चलने लगी। चारों ओर पानी-ही-पानी हो गया । इस खराब मौसम में भी कौओं का जोड़ा अपने बच्चों के साथ घोंसलों में सुरक्षित था, लेकिन बंदर को कोई सुरक्षित स्थान नहीं मिला। वह वर्षा में भीगता ठंड से कांपता रहा।

उसे अफसोस भी हो रहा था और गुस्सा भी आ रहा था कि उसने क्यों नहीं अपना स्थायी बसेरा बनाया, कम-से-कम मौसम की मार तो न झेलनी पड़ती।

कौए ने जब उसकी ऐसी दयनीय हालत देखी तो बोला, “तुम इतने मोटे-ताजे होते हुए भी अपने रहने का ठिकाना क्यों नहीं बनाते? हमें देखो, हमारे पास मौसम की मार से बचने के लिए यह घोंसला है…. और एक तुम हो। इतने हट्टे-कट्टे होते हुए भी कोई स्थायी बसेरा नहीं बना पाए हो। तुम एक डाल से दूसरी डाल पर डेरा डालते रहने के बजाय अपना घर क्यों नहीं बना लेते। ईश्वर ने तुम्हें दो हाथ दिए हैं, उनका सदुपयोग क्यों नहीं करते।”

मौसम की मार झेल रहा बंदर वैसे ही क्रोध में भरा बैठा था। कौए की यह बात सुनकर बंदर का पारा गरम हो गया, वह गुस्से में बोला, “तू मूर्ख काला कौआ, तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझे सलाह देने की कि मैं क्या करूं क्या नहीं। लगता है तुम तमीज भूल गए हो। अभी तुम्हें बताता हूं कि अपने से बड़ों से कैसे बात की जाती है।”

कहकर बंदर ने पेड़ की एक शाख तोड़ी और कोए के घोंसले को तोड़ना शुरू कर दिया। थोड़ी ही देर में घोंसले के तिनके बिखर गए।

कौए के बच्चे नीचे गिरकर मर गए लेकिन कौए का जोड़ा किसी प्रकार जान बचाकर उड़ गया। अब उन्हें अपने बच्चों की मौत के साथ बंदर को सलाह देने का भी दुख था। इसके अलावा वे और कर भी क्या सकते थे। उजड्ड को सीख देने का परिणाम तो भोगना ही था।

शिक्षा: किसी के व्यक्तिगत मामलों में दखल नहीं देना चाहिए।

धोबी का गधा (New moral story)

एक गांव में धोबी रहता था। उसके पास एक गधा और एक कुत्ता था। कुत्ता घर की रखवाली करता और गधे का काम धोबी के कपड़ों का गट्ठर अपनी पीठ पर लादकर लाना ले जाना था। धोबी कुत्ते को बेहद प्यार करता था और कुत्ता भी उसे देखकर पूंछ हिला देता था। वह अपने अगले पैर उठाकर धोबी के सीने पर रख देता। जवाब में धोबी भी प्रेम से उसको सहला देता। यह देखकर गधे को ईर्ष्या होती थी कि इतना कड़ा परिश्रम करने के बाद भी धोबी मुझे वैसा प्यार नहीं करता जैसा कुत्ते को करता है। फिर गधे ने धोबी को खुश करने के लिए ठीक वैसा ही करने की ठानी जैसे कुत्ता करता था। एक दिन

अगले दिन जब गधे ने धोबी को अपनी ओर आते देखा तो वह उसकी तरफ दौड़ा। उसने पूंछ को मोड़कर हिलाने का प्रयास भी किया। गधे ने अगले पैर उठाए और धोबी के सीने पर रख दिए। गधे का यह व्यवहार देखकर धोबी डर गया, सोचा शायद इसे पागलपन का दौरा पड़ा है। उसने आव देखा न ताव, पास पड़ी लाठी उठाई और गधे की धुनाई शुरू कर दी। गधे बेचारे की समझ में ही न आया कि ऐसा क्योंकर हुआ।

शिक्षा : ईर्ष्या का फल सदैव हानिकारक ही होता है।

भेड़िया आया, भेड़िया आया

एक लड़का रोज जंगल में भेड़ें चराने के लिए लाता था। वह बड़ा शैतान था। अपनी शैतानियों द्वारा दूसरों को परेशान करने में उसे बड़ा मजा आता था। मगर जंगल में अकेला होने के कारण वह उकता जाता था। यहां किसे और कैसे परेशान करे, यही सोचता रहता था। जंगल से ही लगते हुए कुछ किसानों के खेत थे। वे सुबह-सुबह आकर अपने खेतों में काम करने में जुट जाते थे ।

एक दिन उसे किसानों के साथ शैतानी करने की सूझी। वह सोचने लगा कि ऐसा क्या किया जाए जिससे सारे किसान परेशान हो जाएं। अचानक उसके दिमाग में एक खुराफत आ ही गई।

वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा, “बचाओ, बचाओ ! भेड़िया आया, भेड़िया आया!” किसानों ने लड़के की आवाज सुनी तो वे अपना-अपना काम छोड़कर लड़के की मदद के लिए दौड़ पड़े। जो भी हाथ लगा, साथ ले आए। कोई फावड़ा ले आया, कोई दरांती, तो कोई हंसिया । मगर जब वे लड़के के पास पहुंचे, तो उन्हें कहीं भेड़िया दिखाई नहीं दिया। किसानों ने लड़के से पूछा, “कहां है भेड़िया ?”

उनका सवाल सुनकर लड़का हंस पड़ा और बोला, “मैं तो मजाक कर रहा था। भेड़िया आया ही नहीं था। जाओ…. तुम लोग जाओ ।” किसान लड़के को डांट-फटकार कर लौट गए।

उनके जाने के बाद वह अपने आपसे बोला, “वाह! कैसा बेवकूफ बनाया। मजा आ गया।” कुछ दिनों बाद लड़के ने फिर ऐसा ही किया। आसपास के किसान फिर मदद के लिए दौड़ आए। लड़का फिर हंसकर बोला, “मैं तो मजाक कर रहा था। आप लोगों के पास कोई और काम नहीं है जो • मामूली-सी चीख-पुकार सुनकर दौड़े चले आते हो।”

किसानों को बड़ा गुस्सा आया और एक बार फिर उन्होंने उसे डांट-फटकार लगाई। मगर ढीठ लड़का हंसता रहा।

अब किसानों ने दृढ़ निश्चय कर लिया कि इस लड़के की मदद को कभी नहीं आएंगे। कुछ समय बाद एक दिन सचमुच ही भेड़िया आ पहुंचा। लड़का दौड़कर एक पेड़ पर चढ़ गया और मदद के लिए चिल्लाने लगा। पर इस बार उसकी मदद के लिए कोई नहीं आया। सभी ने यही सोचा कि वह बदमाश लड़का पहले की तरह ही मजाक कर रहा है। भेड़िए ने कई भेड़ों को मार डाला। इससे लड़के को अपने किए पर बड़ा दुख हुआ।

शिक्षा : झूठ बोलने वालों पर कोई विश्वास नहीं करता।

बुद्धिमान केकड़ा {Latest hindi moral story}

एक घने जंगल में अलग-अलग खड़े बरगद के दो विशाल वृक्ष थे। दरअसल, उनके बीच इतना कम अंतर था कि पहली नजर में देखने पर वे एक ही वृक्ष लगते थे ।

हजारों चिड़ियाएं उस वृक्ष पर घोंसला बनाकर रहती थीं और उसी पेड़ के एक गहरे कोटर में एक काला भयंकर सांप भी रहता था।

जब भी चिड़ियाएं भोजन की खोज में निकलतीं, वह सांप कोटर से निकलता और पेड़ पर चढ़कर उनके बच्चों को खा जाता। उसका यह रोजमर्रा का काम हो गया था। मासूम चिड़िया के बच्चे उस सांप का प्रतिरोध भला कैसे कर पाते।

शाम को जब चिड़ियाएं अपने घोंसलों में वापस लौटतीं तो कोई-न-कोई घोंसला जरूर खाली रहता । उसमें रहने वाले बच्चों को वह काला सांप जो चट कर जाता था ।

चिड़ियाएं बेचारी उस सांप से चाहकर भी छुटकारा नहीं पा सकती थीं । एक दिन सरोवर के किनारे बैठी कुछ चिड़ियाएं अपनी इस असहाय दशा पर आंसू बहा रही थीं कि एक केकड़ा उधर आ निकला और उनसे रोने का कारण पूछा।

चिड़ियाओं ने रोते-रोते उसे पूरी कहानी सुना दी और यह भी कहा कि वे स्वयं अपने बूते पर उस काले भयंकर सांप से छुटकारा पाने में असमर्थ हैं।

सुनकर केकड़ा सोच में डूब गया कि चिड़ियाएं भी तो केकड़े की दुश्मन होती हैं, उनके बच्चों को खा जाती हैं तो क्यों न चिड़ियाओं को ऐसी तरकीब बताई जाए जिससे सांप भी मर जाए और चिड़ियाओं का भी अंत हो जाए। यही सोचता हुआ केकड़ा बोला, “तुम रोओ मत, मैं तुम्हें एक उपाय बता रहा हूं, जिसकी सहायता से वह दुष्ट सांप मारा जाएगा।”

केकड़े ने कहना शुरू किया….

“देखो, उस बरगद के पेड़ के पास ही एक बड़ा नेवला भी रहता है। तुम उस नेवले के बिल से लेकर बरगद के पेड़ के रास्ते में छोटी-छोटी मछलियां बिखेर दो। नेवला एक-एक कर मछलियां खाता हुआ आगे बढ़ेगा और सांप के बिल तक जा पहुंचेगा। अब तुम खुद ही सोच लो, ऐसी स्थित में क्या होगा।”

चिड़ियाएं इस नायाब उपाय को सुनकर खुश हो गईं और उन्होंने केकड़े के बताए अनुसार ही किया कुछ देर बाद नेवला अपने बिल से निकला और मछलियां खाता हुआ बरगद के पेड़ में बने सांप के बिल तक जा पहुंचा।

सांप और नेवले के बीच भीषण लड़ाई हुई और नेवले ने कुछ ही देर में सांप को मार डाला । लेकिन वो सांप को मारने के बाद वह अपने बिल में नहीं लौटा और पेड़ पर चढ़कर चिड़ियाओं के बच्चों को खाना शुरू कर दिया। अब तो वह रोज ही चिड़ियाओं के बच्चों को अपना निवाला बनाने लगा। खाते-खाते वह बहुत मोटा और आलसी हो गया और एक दिन पेड़ की डाल पर चढ़ते समय फिसल कर नीचे जा गिरा और मर गया।

इस प्रकार केकड़े ने चिड़ियाओं की समस्या तो दूर की ही साथ ही नेवले के हाथों चिड़ियाओं से होने वाले स्वयं के प्रति संभावित खतरे को भी टाल दिया।

शिक्षा: शत्रु की सलाह पर अमल करना घातक होता है।

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