शेर और बकरे की कहानी

Aक भयानक शेर तथा चालाक लूमड़ एक बकरे के परिवार को पकड़ने की योजना बनाते हैं। क्या बकरा अपने परिवार को बचाने में सफल होगा?

यह रोचक कहानी पढ़ें और स्वयं पता लगाएं।

प्राचीन समय की बात है कि, एक गरीब गडरिये को पैसे की बहुत जरूरत थी। अपनी इसी मजबूरी में उसने एक कसाई के हाथों अपनी उन बकरियों एवं बकरों को बेचने का फैसला किया, जिन्हें उसने बड़े लाड़ प्यार से वर्षों तक पाला था।अगले दिन प्रातःकाल जब गडरिया अपने रेवड़ को लेकर बूचड़खाने जा रहा था, तो एक बकरी और बकरे का जोड़ा-झुण्ड में से निकलने में सफल हो गया। वे अपनी जान बचाने के लिए जंगल की ओर भागे। जंगल में उन्हें एक ऐसा बड़ा सा पेड़ दिखाई दिया जिसका तना खोखला था। उस ‘बकरे’ दम्पत्ति ने उसी ‘खोह’ को अपना नया घर बनाने का निर्णय लिया।

समय बीतता गया, उन दोनों ने तीन नन्हें बकरों को जन्म दिया। एक दिन जब बकरा दम्पत्ति अपने तीनों बच्चों के साथ अपने घर में विश्राम कर रहे थे, उसी समय एक भूखा शेर वहाँ से गुजरा।उसी समय एक बच्चे ने ‘मिमियाना’ शुरू कर दिया। दुर्भाग्य से शेर ने वह आवाज सुनी तथा अपना रास्ता बदलकर वह पेड़ की ओर मुड़ गया । जब बकरी तथा बकरे ने शेर को अपनी और आते देखा तो वे बहुत चिन्तित हो गए।एक कंपकपाती आवाज ने बकरी ने कहा, भगवान, अब हम क्या करें? शेर तो हम सबकोखा जाएगा।”

ठीक उसी समय बकरे के दिमाग में एक बहुत ही उमदा विचार आया। उसने धीमी आवाज में कहा, “अरे! क्या अभी आपका पेट नहीं भरा? तुमने दो गायों को तो नाश्ते में खाया था। अभी कुछ ही घण्टे पहले तीन सूअर तुम्हारा भोजन बने । क्या अभी भी आपकी भूख शान्त नहीं हुई ?”यह सुनकर शेर एकदम सकते में आ गया। उसने सोचा इस पेड़ की ‘खोल’ में कोई भी बकरी नहीं है, लगता है यहाँ तो कोई बहुत ही बड़ा तथा डरावना राक्षस रहता है। जब बकरे ने शेर को डर के मारे कांपते देखा, तो उसने और ऊँची आवाज में कहा,

“ओहो, ठीक है मैं जाता हूं और तुम्हारे लिए, कोई बड़ा सा शेर पकड़कर लाता हूं।” जब शेर ने यह आवाज सुनी तो उसने वहां से अपनी जान बचाकर भागने में ही भलाई समझी।जब बेहद डरा हुआ शेर अपनी ‘मांद’ की ओर जा रहा था, तो उसका सामना एक लूमड़ से हुआ। लूमड़ ने उससे पूछा, “तुम इतने डरे हुए क्यों हो? तुम किससे डरकर भाग रहे हो?

शेर ने काँपती आवाज में कहा, “वहाँ उस पेड़ के तने की ‘खुड्ड’ में एक भयानक राक्षस रहता है। मैं बड़ी कठिनाई से अपनी जानबचाकर भागा हूं।”जब लूमड़ ने शेर की कहानी सुनी तो वह हा! हा! हा! करके ठहाका मारकर हंसा और वहां कोई भी राक्षस नहीं है। तुम तो चालाक बकरे के छलावे का शिकार हुए हो।

शेर ने लूमड़ पर विश्वास नहीं किया। वह अपनी जिद पर अड़ा रहा कि, उसने वास्तव में एक भयानक राक्षस की आवाज ही सुनी थी।थोड़ी देर की बहस के बाद लूमड़ ने कहा, “चलो, हम चलकर सच्चाई का पता लगाते है |

शेर पेड़ की ओर जाने के लिए बिल्कुल राजी नहीं था। किन्तु उसने सोचा कि यदि उसने जाने में आना कानी की तो लूमड़ उसे कायर समझेगा।इसलिए उसने कहा, “मैं तुम्हें ले तो चलूंगा, किन्तु पेड़ के पास तुम्हें अकेले ही जाना पड़ेगा।”पर लूमड़ ने शेर से तर्क करते हुए कहा, “यदि मैं वहाँ अकेले जाऊँगा और वहाँ राक्षस के स्थान पर बकरा मिला, तो तुम मेरा विश्वास नहीं करोगे। “शेर ने कहा, “तुम मुझे धोखा दे रहे हो, तुम चाहते हो कि राक्षस मुझे अपना भोजन बना ले। ”तब लूमड़ ने सलाह दी, “आओ हम दोनों अपनी पूंछ कसकर बाँध लेते हैं, ताकि हममे से कोई भी अकेला न छूटे। क्या यह एक अच्छा समाधान नहीं है?” इस पर शेर उसकी बात मान गया।

इसलिए शेर और लूमड़ ने अपनी पूँछ इकट्ठी बांधी और पेड़ की ओर चल पड़े। जब वे पेड़ के पास पहुँचे, शेर ने फुसफुसा कर कहा, “यही वह पेड़ है जिसके तने में बड़ा सा ‘खोह’ है। वह राक्षस इसी ‘खोह’ में रहता है। ”

जब बकरे ने शेर को लूमड़ के साथ अपनी ओर आते देखा, तो उसने ‘खोह’ के भीतर से ही जोरदार आवाज में कहा “देखो यह लूमड़ कितना बेईमान है, मैंने इसे अपने खाने के लिए शेर लाने को कहा था।

किन्तु वह अब तक नहीं आया। समझ नहीं आता कि वह कहाँ पर अटककर रह गया?”जब शेर ने यह बात सुनी तो उसने सोचा कि लूमड़ ने उसके साथ चालाकी की है। डर से घबराकर उसने वापिस जाने की कोशिश की, किन्तु लूमड़ तो अपनी बात की सच्चाई सिद्ध करने पर अड़ा हुआ था। इसलिए वह दोनों विपरीत दिशाओं में दौड़े। दौड़ते समय वह यह भूल गए कि उन दोनों की पूँछ आपस में बंधी हुई हैं। परिणाम यह हुआ कि वे एक दूसरे के उपर लुढ़क गए। लुढ़कते-लुढ़कते वे नदी में गिर कर डूब गए। इस प्रकार अपनी समझ-बूझ से बुद्धिमान बकरा अपने परिवार के प्राण बचाने में सफल हो गया।

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