तीन ठगों की कहानी

पुराने समय की बात है। एक छोटे से गांव में तीन चालाक ठग रहते थे – रामू, भोला और घसीटा। ये कोई साधारण धोखेबाज नहीं थे, बल्कि बहुत ही होशियार और शातिर थे। गांव में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति था जिसे उन्होंने धोखा न दिया हो।

गांव के सभी लोग इन तीनों से बहुत परेशान थे। हर व्यक्ति किसी न किसी तरह से उनके जाल में फंस चुका था। आस-पास के गांवों के लोग भी इनसे बचकर नहीं रहे थे। अब सभी को पता चल गया था कि ये तीनों बड़े धोखेबाज हैं और नई-नई तरकीबें अपनाकर लोगों को ठगते रहते हैं।

इसलिए अब सभी गांव वाले इनसे सावधान रहते थे। जैसे ही कोई इन तीनों को दूर से आते देखता, तुरंत अपना रास्ता बदल लेता। इस वजह से अब इन तीनों की कमाई बंद हो गई थी। अब कोई भी उनके धोखे में नहीं आता था।

नया शहर की तलाश

जब स्थिति बहुत खराब हो गई, तो तीनों ने आपस में सलाह की। रामू ने कहा, “अब यहां के लोग हमें पहचान गए हैं। कोई हमारे चक्कर में नहीं फंसता। क्यों न किसी नए शहर में जाकर अपना काम करें?”

दोनों साथी इस बात से सहमत हो गए और वे तीनों किसी नए शहर की तलाश में चल पड़े।

चलते-चलते उन्हें बहुत जोर से भूख और प्यास लगी, लेकिन उनके पास एक पैसा भी नहीं था। वे बहुत परेशान हो गए कि अब क्या खाएं और क्या पिएं।

हलवाई की दुकान पर धोखाधड़ी

आखिरकार वे एक नए शहर में पहुंचे। रामू सबसे बड़ा था, इसलिए बाकी दोनों उसे ‘उस्ताद’ कहकर बुलाते थे। रामू ने कहा, “भाइयो, अब कुछ खाना-पीना जरूरी है। हम बहुत थक गए हैं।”

भोला बोला, “लेकिन यार, हमारे पास तो एक पैसा भी नहीं है।”

रामू ने मुस्कुराते हुए कहा, “चलो भाइयो, इसका भी कोई तरीका निकालते हैं।”

बाजार में पहुंचकर उन्होंने चारों तरफ नजर दौड़ाई। सामने ही एक हलवाई की दुकान दिखी जहां तरह-तरह की स्वादिष्ट मिठाइयां सजी थीं – जलेबी, लड्डू, बर्फी, रसगुल्ला और न जाने क्या-क्या।

मिठाइयों को देखकर उनके मुंह में पानी आ गया। रामू ने अपने साथियों से कहा, “चलो दोस्तो, पहले इसी हलवाई की दुकान पर अपनी कला दिखाते हैं।”

बाकी दोनों खुश हो गए। घसीटा बोला, “मेरा 20 साल का अनुभव कहता है – पहले पेट भरो, फिर कोई और काम करो।”

भोला ने कहा, “मैं तो पूरा 1 किलो लड्डू खाऊंगा।”

घसीटा बोला, “उस्ताद, मैं 1 किलो गरम जलेबी खाऊंगा। देखकर ही मुंह में पानी आ रहा है।”

योजना बनाना

रामू ने एक चालाकी भरी योजना बनाई और दोनों साथियों को समझाई। योजना के अनुसार भोला और घसीटा दुकान के अंदर गए और बैठ गए।

दुकानदार लालाराम बहुत खुश हुआ क्योंकि वह बहुत कंजूस था और उसकी इस आदत की वजह से ग्राहक कम आते थे। आज सुबह से एक भी ग्राहक नहीं आया था। दो ग्राहकों को देखकर वह और उसकी पत्नी रामकली बहुत खुश हुए।

लालाराम ने मीठे स्वर में पूछा, “भैया, कौन सी मिठाई चाहिए?”

भोला ने पूछा, “सेठ जी, जलेबी क्या भाव है?”

“10 रुपए किलो,” लालाराम ने जवाब दिया।

“ठीक है, 1 किलो गरम जलेबी दे दो,” भोला ने कहा।

रामकली ने गरम जलेबी तौलकर भोला को दे दी। भोला वहीं बैठकर जलेबी खाने लगा।

कुछ देर बाद घसीटा भी उठकर लाला के पास गया और बोला, “सेठ जी, देसी घी के लड्डू क्या भाव हैं?”

“10 रुपए किलो।”

“ठीक है, 1 किलो लड्डू तौल दीजिए।”

लाला ने लड्डू तौलकर घसीटा को दे दिए। घसीटा भी बैठकर लड्डू खाने लगा।

एक लड्डू खाते ही वह बोला, “वाह सेठ जी! बहुत स्वादिष्ट लड्डू हैं। 20 साल के अनुभव में ऐसे लड्डू कभी नहीं खाए।”

पैसों का झगड़ा

जब भोला ने जलेबी खत्म की, तो वह दुकान से बाहर जाने लगा। तभी लालाराम ने आवाज लगाई, “अरे भाई, जलेबी के पैसे तो दे जाओ।”

भोला ने कहा, “सेठ जी, मैंने तो आते ही 10 रुपए दे दिए थे।”

लालाराम बोला, “नहीं भाई, तुमने मुझे एक पैसा भी नहीं दिया।”

दोनों में बहस होने लगी। इसी बीच घसीटा ने जोर से कहा, “सेठ जी, मेरे पैसे भूल मत जाना। मैंने तो 50 रुपए दिए थे। 10 रुपए के लड्डू मिले, बाकी 40 रुपए वापस दो।”

यह सुनकर लालाराम का चेहरा पीला पड़ गया। उसने अपनी तिजोरी में देखा तो एक भी नोट नहीं था।

गवाह बनना

बाहर खड़ा रामू यह सब देख रहा था। वह अंदर आया और बैठ गया। लालाराम ने रामू से कहा, “भाई, तुम बाहर से यह सब देख रहे थे। बताओ, क्या इन्होंने मुझे पैसे दिए?”

रामू ने शांति से कहा, “इन्होंने पैसे कहां दिए? मैंने अपनी आंखों से देखा कि इन दोनों ने मिठाई मांगी और खाने लगे।”

भोला और घसीटा और भी गुस्सा हो गए और बोले, “इससे हमारा क्या मतलब? हमने तो पैसे दे दिए हैं।”

कोतवाली में केस

लड़ाई बढ़ने पर लोगों की भीड़ जमा हो गई। किसी ने कोतवाल को खबर दे दी। कोतवाल के सिपाही आए और तीनों को कोतवाली ले गए।

कोतवाल ने पूरी बात सुनने के बाद लालाराम से पूछा, “क्या तुम्हारे पास कोई गवाह है?”

लालाराम को रामू की याद आई। वह बोला, “हां कोतवाल जी, एक आदमी था जिसने सब कुछ देखा था।”

“तो शाम तक उसे यहां पेश करो,” कोतवाल ने कहा।

रामू की चालाकी

लालाराम दौड़कर अपनी दुकान गया। रामू अभी भी पास के पेड़ के नीचे बैठा था। लाला ने हाथ जोड़कर कहा, “भाई, तुम मेरी गवाही दे दो।”

रामू ने कहा, “हां लाला जी, मैंने सब देखा है। उन दोनों ने आपको एक पैसा नहीं दिया था।”

“तो चलो कोतवाल के पास,” लाला ने कहा।

रामू ने चालाकी की। वह कांपते हुए बोला, “लाला जी, मुझे बहुत ठंड लग रही है। लगता है बुखार है।”

लालाराम ने अपनी पत्नी से कहा, “रामकली, मेरी कश्मीरी शॉल ले आओ और इसके लिए गरम चाय भी बनाओ।”

रामकली हैरान हो गई क्योंकि उसका पति बहुत कंजूस था। फिर भी उसने चाय बनाई और शॉल ला दी।

रामू ने चाय पीते हुए कहा, “लाला जी, मैं खाली चाय नहीं पीता। कुछ और भी चाहिए।”

लालाराम ने चार लड्डू और चार जलेबी भी दे दी।

कोतवाल के सामने धोखा

चाय-नाश्ता खत्म करके रामू बोला, “अब मैं ठीक हूं। चलिए।”

कोतवाली में पहुंचकर कोतवाल ने रामू से पूछा, “क्या तुमने इन्हें बिना पैसे दिए मिठाई खाते देखा?”

रामू ने अपने तेवर बदलते हुए कहा, “नहीं कोतवाल जी, मैंने तो इन दोनों को पैसे देते देखा है। एक ने 10 रुपए दिए, दूसरे ने 50 रुपए दिए।”

लालाराम का चेहरा सफेद हो गया। वह बोला, “अरे भाई, तुम यह क्या कह रहे हो?”

रामू ने कहा, “जब इसने मुझे धमकी दी तो मैं डर गया था। लेकिन आपके सामने मुझे कोई डर नहीं है।”

नाटक जारी

रामू ने आगे कहा, “कोतवाल जी, इसने अपने मुंह से कबूल किया है कि इसने मुझे चाय, लड्डू और जलेबी खिलाई है।”

कोतवाल गुस्से में बोला, “लालाराम, यह क्या बात है? भले लोगों पर झूठा इल्जाम लगा रहे हो?”

रामू ने और नाटक किया, “कोतवाल जी, इस लाला का कोई भरोसा नहीं। यह कह सकता है कि यह शॉल भी इसकी है।”

लालाराम चिल्लाया, “हां हां, यह शॉल मेरी है! मैंने इसे दी थी जब इसे ठंड लग रही थी।”

रामू तुरंत बोला, “देखा कोतवाल जी? यह नंबर एक का धोखेबाज है।”

सजा

कोतवाल का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। वह लालाराम को डांटते हुए बोला, “चुपचाप 40 रुपए वापस करो, नहीं तो जेल में डाल दूंगा।”

लालाराम समझ गया कि वह ठगों के जाल में फंस गया है। उसने 40 रुपए निकालकर घसीटा को दे दिए और माफी मांगकर अपनी दुकान चला गया।

तीनों ठग खुशी से कोतवाली से बाहर निकले।

सच्चाई का पता चलना

जब वे लाला को चिढ़ा रहे थे, “कैसी रही हमारी चालाकी? मिठाई भी खाई, पैसे भी नहीं दिए और कीमती शॉल भी ले ली।”

लेकिन उन्हें पता नहीं था कि कोतवाल का एक सिपाही पीछे से सुन रहा था। सिपाही ने यह बात कोतवाल को बता दी।

अब कोतवाल को एहसास हुआ कि वह गलत फैसला कर चुका है। लेकिन उसके पास कोई सबूत नहीं था, इसलिए उसने कुछ नहीं कहा।

नई योजना

अगले दिन तीनों ठग एक पुराने खंडहर में रुके। उनके हौसले और बढ़ गए थे। दो-तीन दिन में उन्होंने और भी लोगों को ठगा और अच्छी खासी दौलत जमा की।

तीसरे दिन रात को उनके पास एक अमीर आदमी आकर रुका। बातचीत में पता चला कि वह एक घोड़े के व्यापारी का मुंशी है। उसके मालिक के पास बहुत कीमती घोड़े हैं।

ठगों ने सोचा कि शहर छोड़ने से पहले एक आखिरी बड़ी ठगी की जाए।

घोड़े की चोरी की कोशिश

अगली सुबह रामू और घसीटा घोड़े के व्यापारी के पास गए। रामू ने कहा, “मुझे एक अच्छी नस्ल का घोड़ा चाहिए। पैसे की कोई दिक्कत नहीं है। यह मेरा भाई है जो आंखों से अंधा है।”

व्यापारी ने एक बेहतरीन घोड़ा दिखाया और कहा, “इसकी कीमत हजारों में है।”

रामू ने कहा, “पहले मैं इसकी सवारी करके इसकी रफ्तार देखना चाहता हूं। तब तक मेरा अंधा भाई यहीं बैठेगा।”

व्यापारी मान गया। रामू की योजना थी कि वह घोड़े को लेकर भाग जाएगा और घसीटा भी मौका देखकर निकल जाएगा।

जाल में फंसना

रामू घोड़े पर सवार होकर दौड़ने लगा। वह मन में खुश हो रहा था कि काम बन गया। लेकिन अचानक घोड़े ने उछलना शुरू कर दिया और रामू को जमीन पर पटक दिया।

जब रामू को होश आया तो देखा कि चारों तरफ सिपाही खड़े हैं।

असली सच्चाई

व्यापारी ने मुस्कुराकर कहा, “क्यों रामू उस्ताद, आज तो तुम्हारी ठगी तुम पर भारी पड़ गई।”

रामू हैरान रह गया। व्यापारी ने आगे कहा, “मैं कोई व्यापारी नहीं हूं, बल्कि इस शहर का कोतवाल हूं। उस दिन हलवाई की दुकान पर तुमने जो धोखाधड़ी की थी, उसके बाद मुझे तुम पर शक हो गया था।”

“लेकिन मेरे पास सबूत नहीं था। इसलिए मैंने अपने जासूस तुम्हारी निगरानी में लगा दिए। जो आदमी तुम्हें सराय में मिला था, वह भी मेरा ही आदमी था।”

“और यह घोड़ा भी मेरा है। मैंने इसे इस तरह प्रशिक्षित किया है कि यह मेरे अलावा किसी और को अपनी पीठ पर नहीं बैठने देता।”

“तुम्हारे अंधे होने का नाटक करने वाले साथी को भी मेरे सिपाहियों ने गिरफ्तार कर लिया है।”

सजा

डर के मारे रामू ने अपने तीसरे साथी के बारे में भी बता दिया। सिपाहियों ने भोला को भी पकड़ लिया।

इस तरह तीनों ठग जो कई लोगों को धोखा दे चुके थे, आखिरकार पकड़े गए। उन्हें कई साल जेल की सजा हुई।

अंत

तीनों ठगों के पकड़े जाने से लोगों को राहत मिली। उनसे छीने गए सामान को असली मालिकों को वापस कर दिया गया। इस तरह न्याय की जीत हुई और धोखेबाजों को अपने कर्मों की सजा मिली।


सीख: बुराई कितनी भी चालाक हो, आखिर में हार जाती है। सच्चाई और न्याय की हमेशा जीत होती है।

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