चेतक की वीरगाथा – महाराणा प्रताप का अमर साथी

इतिहास में कुछ नाम सिर्फ याद नहीं रह जाते, बल्कि वे मिसाल बन जाते हैं। ऐसा ही एक नाम है चेतक – महाराणा प्रताप का वफादार घोड़ा। यह सिर्फ एक जानवर की कहानी नहीं है, बल्कि साहस, वफादारी और बलिदान की एक अनूठी गाथा है।

चेतक का आगमन

बात उन दिनों की है जब गुजरात से एक घोड़ा व्यापारी महाराणा प्रताप के दरबार में आया। उसके पास तीन विशेष काठियावाड़ी नस्ल के घोड़े थे – चेतक, त्राटक और अटक। व्यापारी ने दावा किया कि ये घोड़े अपनी वफादारी और ताकत के लिए बेमिसाल हैं।

महाराणा प्रताप ने कहा, “पहले इनकी वफादारी का सबूत दिखाओ।”

व्यापारी ने अटक का चुनाव किया। उसके पैरों को मजबूत रस्सियों से बांधकर, दूर जाकर एक तेज आवाज लगाई। अपने मालिक की पुकार सुनकर अटक पागल हो गया। उसने रस्सियां तोड़ने की कोशिश की, लेकिन रस्सियां इतनी मजबूत थीं कि उसके पैर ही कट गए। फिर भी वह अपने मालिक तक पहुंचने की कोशिश करता रहा, जब तक कि उसकी सांस नहीं रुक गई।

यह दृश्य देखकर महाराणा प्रताप दंग रह गए। उन्होंने तुरंत चेतक और त्राटक दोनों को खरीद लिया। चेतक को अपने पास रखा और त्राटक को अपने भाई शक्ति सिंह को दे दिया।

चेतक और महाराणा का अटूट रिश्ता

समय के साथ चेतक महाराणा प्रताप का सबसे प्रिय साथी बन गया। महाराणा के साथ-साथ चेतक भी मजबूत और तेज बनता गया। वह पहाड़ों और जंगलों में इतनी तेजी से दौड़ता था कि लगता था हवा से बात कर रहा हो।

महाराणा भी चेतक को अपने बेटे की तरह मानने लगे। दोनों के बीच ऐसा प्रेम था कि बिना कुछ कहे ही एक-दूसरे की बात समझ जाते थे।

हल्दीघाटी का महान युद्ध

फिर आया हल्दीघाटी का ऐतिहासिक युद्ध। मुगल सेना में लगभग एक लाख सैनिक थे, जबकि महाराणा प्रताप के पास केवल बीस हजार योद्धा थे। मुगलों के पास शक्तिशाली हाथी भी थे।

महाराणा ने एक चतुर चाल चली। उन्होंने चेतक के माथे पर हाथी की नकली सूंड बांध दी। इससे मुगल सैनिकों को भ्रम होता था कि कोई हाथी उनकी तरफ आ रहा है। लेकिन जब तक वे समझ पाते, चेतक बिजली की गति से उनके बीच पहुंच जाता।

चेतक की अद्भुत ताकत

चेतक की शक्ति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह महाराणा प्रताप के साथ कुल मिलाकर 300 किलो से ज्यादा वजन उठाकर युद्ध में दौड़ता था। इसमें महाराणा का 110 किलो का वजन, 81 किलो का भाला, 72 किलो का कवच और दो-दो 25 किलो की तलवारें शामिल थीं।

मानसिंह से टक्कर

युद्ध के दौरान महाराणा प्रताप ने चेतक से कहा, “चेतक, आज हमें मानसिंह तक पहुंचना है।” मानसिंह मुगल सेना का सेनापति था।

चेतक ने जैसे महाराणा की बात का जवाब दिया और हवा की तरह दौड़ने लगा। उसने मुगल सेना की कतारों को चीरते हुए महाराणा को मानसिंह के हाथी के पास पहुंचा दिया।

चेतक अपने पिछले पैरों पर खड़ा होकर अगले पैर मानसिंह के हाथी के सिर पर रख दिया। महाराणा ने अपना भाला मानसिंह पर फेंका, लेकिन वह हाथी के हौदे में छुपकर बच गया। हां, उसका महावत मारा गया।

लेकिन इसी दौरान मानसिंह के हाथी की सूंड में बंधी तलवार से चेतक का एक पैर बुरी तरह कट गया।

वीरगति की ओर

घायल होने के बाद भी चेतक ने हार नहीं मानी। महाराणा भी युद्ध में बुरी तरह घायल हो चुके थे। ऐसे में झाला मन्ना ने महाराणा से कहा कि वे युद्ध छोड़कर चले जाएं क्योंकि राजा के जीवित रहने में ही मेवाड़ की भलाई है।

महाराणा ने अपना मुकुट झाला मन्ना को दे दिया और घायल चेतक पर सवार होकर रणभूमि छोड़ी। झाला मन्ना ने अपनी जान देकर मुगलों को धोखे में रखा।

अंतिम छलांग

चेतक अपने घायल पैरों के बावजूद महाराणा को लेकर दौड़ता रहा। मुगल सैनिक पीछा कर रहे थे। रास्ते में एक 26 फुट गहरा नाला आ गया। महाराणा को लगा कि अब बचना मुश्किल है।

लेकिन चेतक ने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी छलांग लगाई। अपने आखिरी बल से उसने उस नाले को पार कर दिया और महाराणा को सुरक्षित दूसरी तरफ पहुंचा दिया।

मुगल सैनिक उस नाले को पार नहीं कर सके। लेकिन यह छलांग चेतक के लिए अंतिम साबित हुई। दूसरी तरफ पहुंचते ही वह गिर पड़ा और महाराणा की गोद में अपने प्राण त्याग दिए।

शक्ति सिंह का आगमन

तभी जंगल से घोड़ों की आवाज आई। महाराणा के भाई शक्ति सिंह आए, जो हल्दीघाटी में मुगलों की तरफ से लड़े थे। अपने भाई को संकट में देखकर उन्होंने अकबर का साथ छोड़ दिया था।

शक्ति सिंह ने माफी मांगी और अपना घोड़ा त्राटक महाराणा को दे दिया। दोनों भाइयों ने मिलकर चेतक का अंतिम संस्कार किया।

चेतक की अमर गाथा

चेतक की यह गाथा आज भी हमें सिखाती है कि सच्ची वफादारी और साहस क्या होता है। वह सिर्फ एक घोड़ा नहीं था, बल्कि एक सच्चा मित्र था जिसने अपने स्वामी के लिए अपनी जान तक दे दी।

महान कवि श्याम नारायण पांडेय ने चेतक की वीरता के लिए ये पंक्तियां लिखीं:

रण बीज चौकड़ी भर भर कर चेतक बन गया निराला था राणा प्रताप के घोड़े से पड़ गया हवा का पाला था

आगे नदियां पड़ी अपार घोड़ा कैसे उतरे पार राणा ने सोचा इस पार तब तक चेतक था उस पार

चेतक की कहानी हमें बताती है कि असली वफादारी कैसी होती है और कैसे एक सच्चा साथी कभी अपने मालिक को अकेला नहीं छोड़ता। यही कारण है कि आज भी चेतक का नाम इतिहास के सुनहरे पन्नों में अमर है।

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